
दो तिया छह, यनि दो तिहाई बहुमत की लड़ाई , बारिश से पहले मेघा आई
मध्यप्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव …बात निकली है तो अब दू्रतलक जाएगी
राजेश शर्मा
पहाड़े पढ़कर तो सभी ओहदे पर पहुंचे हैं और पहुंचते भी रहेंगें लेकिन सियासत का पहाड़ा…पहाड़ चढ़ने से बहुत अलग होता है। इन पहाड़ियों पर गर्म हवाओं के थपेड़े, आग उगलती चट्टानें , उसमें झुलसते पांव,आस्तीनों के सांप, चमचों का सैलाब बड़ा कष्टदायक होता है। सोना जब पीतल के भाव जाए तो समझ लीजिए बिचौलियों की हरकत है।
एक होनहार की सफलता को चुनौती देते हैं लोकतंत्र के बाधक तत्व जिनमें जातिवाद,धर्मवाद,भाषावाद,प्रांतवाद,क्षेत्रवाद..इत्यादि। यही वह पहाड़ियाँ हैं जिनसे गुजरकर फतह हासिल की जा सकती है।
नीचे से ऊपर जाना सभी के लिए प्रेरणादायक है। किन्तु दलदल में गंगाजी खोजना सबसे बड़ा कष्टदायक है। हरामखोरों,झूठेलों,नकली वफादारों के गिरोह में फंसना –नासमझी ही कहा जाएगा। यह सब माचिस की वह तीलियां हैं। जो फूंक से अपना घर जलाकर खुद रोशनियां करती हैं। फूंकफूंक कर कदम रखना इस क्षेत्र में खुद की बुद्धिमत्ता है।
लेख कटू हो सकता है , सियासत के संदूकबाजियों को रास नहीं आ सकता लेकिन समझदारों को इशारा देने से अभी यह जमीं रहित नहीं।
बात सीहोर जिले के चर्चित विधानसभा क्षेत्र इछावर की हो रही है जहां अर्थहीन यानि बैकार,पाल से उतरे आम,तथाकथित फैसलों से मात खाकर खुद ही खुद जमीन पर आ गिरे। अब चाहे वह भाजपा होय या कांग्रेस या अन्य कोई ओर। उन्हें बंदूकें चलाने का शोक तो है लेकिन खुद के कमजोर हो गए कंधे इसलिए दूसरों के कंधों को तलाशते हैं। अमूमन समूचे प्रदेश का ही यही परिदृश्य है। जोश जोखिम से नहीं डरता मगर चापलूसियों को भांप भी नहीं पाता। कायर राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण क्या कि राष्ट्र की एक बेटी को इसलिए पदों से बेदखल कर दिया जाता है कि सिर्फ उसका गुनाह इतना था कि उसने कांग्रेस की सदस्यता क्यों ग्रहण की। क्या यही स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है? अरे भारत के प्रजातंत्र की रक्षा का सबको अधिकार है। बस उसमें और तुम में फर्क इतना कि वह किसी नेता,अभिनेता,बाहुबली,रसूकदार,कपटी,धोखेबाज,दिखावटी,वंशा-वंशवादी की पुत्री नहीं। अपितु क्षितिज छुआ है खुद के बल पर।
फिर भी ….
स्व. दुष्यन्त कुमार की यह पंक्तियाँ याद आ रही हैं।
“अब यकीनन ठोस है धरती धरती हकी़क़त की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन खौ़फ के मारे न देख।”
लड़ो संविधान ने सबको समानता का अधिकार दिया है लेकिन सोच समझकर…चापलूसी सियासत का सबसे महंगा मगर इतना बढ़ा खतरनाक हथियार है जिससे राजा-महाराजा भी बच नहीं पाए।
याद रखना, स्व. गोपालदास नीरज की यह पंक्तियाँ भी मौजू हैं।
“समय ने… जब भी अंधेरों से दोस्ती की है,
जलाकर अपना ही घर हमने रोशनी की है।
सबूत हैं —मेरे घर में धुएँ के धब्बे,
कि –यहां उजालों ने कभी खुदकुशी की है।
(यह लेख- एमपी की पहली महिला पर्वतारोही , इछावर विधानसभा के छोटे से गांव की रहवासी, कांग्रेस नेत्री मेघा परमार को समर्पित)
टिकट-फिकट,,जय-पराजय की चर्चा बाद में।
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