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आपदा में अवसर या अवसाद -जयंत शाह

आपदा में अवसर या अवसाद |

जयंत शाह

आपदा के आते ही व्यक्ति तनाव में आ जाता है |और अगर आपदा एक के बाद एक आती ही जाएं, जिसका अंत दिखाई ही न दे रहा हो तो किसी के भी अवसाद से घिर जाने के अवसर ज्यादा बलवती हो जाते हैं। इसके बीच की एक लाइन ये भी है कि आपदा अपने साथ एक अवसर भी लेकर आती है। ठीक वैसे ही जैसे हर आने वाली समस्या अपने समाधान के साथ आती है। ठंडा दिमाग समाधान को आसानी से पकड़ लेता है और अधीर या अशांत चित्त समस्या को गहरा देता है।
आपदा में अवसर तलाशने में हमारे शाह और शहंशाह दोनों को महारत हासिल रही है। वक्त वक्त की बात है उनकी यह सिद्धि उनका साथ छोड़ती नजर आने लगी है। याद कीजिए उन सभी मामलों को जहाँ विपक्ष उनसे सवाल पर सवाल पूछता हुआ अपना गला सूखा लेता था लेकिन साहेब का मौन भंग नहीं होता था । मानो बेताल विक्रम के कंधे पर सवार है जो विक्रम के मौन भंग करते ही उड़कर वापस पेड़ पर लटक जाएगा। वह मामला चाहे राफेल का हो या पेगासिस का, मणिपुर की हिंसा का हो या असम मिजोरम पुलिस की झड़प का हो, महंगाई का हो या बेरोजगारी का, अर्थव्यवस्था की बदहाली का हो या कालेधन की वापसी का , नोटबन्दी का हो या तालाबंदी का, अडानी का हो या बृजभूषण सिंह का, आंदोलनरत किसान का हो या बढ़ते आयात का हो या घटते निर्यात का, कमजोर होते रुपये का हो या मजबूत होते डॉलर का|ऐसे अनेकानेक मामलों में साहेब की चुप्पी उनकी रक्षा के लिए ढाल भी बनी रही और हथियार भी |
लेकिन पिछले कुछ दिनों से सरकार ने जो फैसले लिए वह बड़े ही जल्दबाजी वाले माने जा रहे हैं। जैसे किरेन रिजिजू का मंत्रालय बदला जाना, महिला पहलवानों के प्रदर्शन पर ध्यान नहीं देना, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के दिल्ली सरकार के पक्ष में दिए निर्णय को एक अध्यादेश के मार्फत पलट देना और 28 मई को नए संसद भवन सेंट्रल विस्टा का उद्घाटन सुनिश्चित हो जाना।
पेंच फंसा है |
सेंट्रल विस्टा के उद्घाटन का | जहां महामहिम राष्ट्रपति को उद्घाटनकर्ता के रूप में आमंत्रित नहीं किये जाने पर प्रमुख विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने सवाल उठा दिए हैं।

संवैधानिक व्यस्वस्था अनुरूप महामहिम ही लोकतंत्र के सर्वोच्च मुखिया हैं । लोकसभा और राज्यसभा से भी ऊपर होते है राष्ट्रपति। सरकार के गठन मे और बजट सत्र के शुभारंभ में राष्ट्रपति ही सर्वोच्च हैं। ऐसे में नए संसद भवन का शुभारंभ , लोकतंत्र के मुखिया द्वारा किए जाने के मामले को प्रमुख विपक्षी दल के द्वारा उठाया गया और मुद्दा बनाया गया ।
वैसे भी भारतीय शासन व्यवस्था चलती भी महामहिम राष्ट्रपति के नाम से ही है। और इस अवसर पर प्रमुख का गौण हो जाना कहीं एक आपदा के रूप में सरकार के सामने उपस्थित न हो जाए। समय रहते इस पर समुचित ध्यान दिए जाने की महती आवश्यकता है।

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