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लेख: अब मध्यप्रदेश में भाजपा की परीक्षा – शैलेश तिवारी

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अब मध्यप्रदेश में भाजपा की परीक्षा

शैलेश तिवारी

सत्ता का अपना चरित्र होता है….. तभी तो चाल… चरित्र … और चेहरे का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी इन दिनों गुटबाजी का शिकार हो गई है…..। वैसे जब जब चुनाव की पदचाप नेताओं के कानों में कदमताल करती है… तब तब सत्ताधारी दल गुटबाजी की दलदल में फंसता जाता है… याद कीजिए काँग्रेस की सत्ता का वह दौर… जब काँग्रेस एक पार्टी के रूप से कहीं ज्यादा…. गुटों के रूप में पहचानी जाती रही…।
अब वही आवश्यक बुराई …. यानि गुटबाजी का शिकार भाजपा हो रही है….. सत्ता सुख भोगते हुए 2018 में पंद्रह साल के … लंबे काल पर जनता ने विराम लगा दिया था…. लेकिन काँग्रेस के मात्र डेढ़ साल के कार्यकाल के बाद….. भाजपा ने पीछे के दरवाजे से सत्ता के महल में पुनः प्रवेश पा लिया था… सत्ता की गीत माला में ये पुनः प्रवेशी गीत बजते बजते…. चुनावी बेला की सुरमई सांझ राजनीति के आकाश में अपना वर्चस्व जमाने लगी है…. और जिनके सहारे भाजपा ने सत्ता सुख की प्राप्ति की थी… अब वही सिंधिया गुट भाजपा के लिए लगभग ढाई दर्जन सीटों पर सिरदर्द बनने के लिए अपनी ताल ठोंक रहा है…। काँग्रेस से जो भाजपा प्रवेशी हैं… उनमें से जो तत्समय उपचुनाव जीत गए थे वह तो अपना टिकट पक्का मानकर चल ही रहे हैं लेकिन जो उस समय काँग्रेस से आने वाले भाजपा के टिकट पर उपचुनाव हार गए थे… वह टिकट पाने के दौड़ में सबसे आगे हैं…. और इन सीटों पर जो पुराने भाजपाई हैं… उनका अपना भी मजबूत दावा है… टिकट वितरण की इस वैतरणी को पार करना भाजपा के लिए चुनोती और टिकट से वंचित रूठों को मनाना उसकी मजबूरी होगी… इसके बाद भी असंतुष्टों की सम्भावित गतिविधि… पार्टी की मुसीबत बढ़ा भी सकती है…।
दूसरा धड़ा है…. संगठन का … जो सत्ता पुरुषों से न केवल नाराज चल रहा है…. बल्कि दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ लंगोट कस रखी है… जिसको मौका मिला वही पटखनी देने को तैयार…. बीते रविवार प्रदेश के मुखिया का उड़नखटोला … देश की राजधानी की तरफ अचानक क्या उड़ा…. संगठन की सत्ता से विरोधी हवा …. चर्चाओं की आंधी में बदल गई….। कहने की जरूरत नहीं है कि तीसरा गुट…. सत्ता के शीर्ष पर बैठे सत्ता पुरुष का है….. जिसने अपनी जमावट ऐसी कर रखी है कि अन्य गुट उन्हें देखकर …. पिछले तीन सालों से कसमसाने के सिवाय कुछ कर नहीं पा रहे हैं….।
इन तीन घोषित गुटों के अलावा एक चौथा गुट भी है… जिसे असंतुष्टों का गुट कहा जा सकता है…. इसमें एक पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और अन्य भूतपूर्व पदाधिकारी… लेकिन भाजपा के अभूतपूर्व व्यक्तित्व शामिल हैं… जो समय समय पर अपनी शिकायतें या सुझाव पार्टी और सत्ता दोनों तक नाराजगी के साथ पहुंचाते रहे हैं….।
इन्हीं में से एक असंतुष्ट….. प्रदेश के पूर्व सीएम और राजनैतिक संत के रूप में जाने पहचाने, जनसंघ और भाजपा के संस्थापक कैलाश जोशी के पुत्र और शिवराज सरकार के पूर्व केबिनेट मंत्री दीपक जोशी ने काँग्रेस का हाथ थामकर भाजपा में बैचेनी बढ़ा दी…. और कोविड के समय प्रदेश सरकार से एम्बुलेंस नहीं मिल पाने की वजह से उनकी पत्नी के निधन हो जाने का मार्मिक बयान देकर भाजपा सरकार को लापरवाह और सम्वेदनशून्य सरकार के रूप में कटघरे में खड़ा कर दिया…।
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा के नेता इसे समझ नहीं रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक बैठक में यह भी कहा कि… मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि काँग्रेस भाजपा को चुनाव हराने की स्थिति में नहीं है लेकिन भाजपा को भाजपा ही हरा सकती है।
2023 के चुनावों की रणभेरी औपचारिक रूप से चाहे जब बजे…. लेकिन सभी राजनैतिक दलों के अंदरखानों में विस चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। शायद इसीलिए भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय सहित तेरह अन्य नेताओं को रूठे हुओं को मनाने की जिम्मेदारी सौंप दी है ताकि टिकट वितरण के समय टिकट से वंचित रह जाने वालों को पार्टी के पक्ष में काम करने के लिए मनाया जा सके।
इधर एवरेस्ट चोटी को फतह करने वाली प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही मेघा परमार ने काँग्रेस का दामन थामकर भाजपा को अप्रत्याशित झटका दे दिया… तो भाजपा सरकार ने आनन फानन में उन्हें महिला एवं बाल विकास विभाग के ब्रांड एम्बेसडर पद से भारमुक्त कर दिया… इस पर काँग्रेस ने सरकार के इस कदम को महिलाओ के सम्मान पर कुठाराघात बताया है तो कुछ लोग इसे ओबीसी से भी जोड़ रहे हैं…. अगर कांग्रेस मेघा परमार को पद से हटाए जाने वाले मामले को …महिलाओ के अपमान वाले नैरेटिव को गढ़ने तथा इसके व्यापक प्रचार प्रसार में सफल हो जाती है तो गुटबाजी में उलझी सत्ताधारी भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी….। बहरहाल भाजपा को अपनी सत्ता बचाए रखने की चुनोती का सामना करने से पहले… अपनी अंतर्कलह को शांत करना होगा…. अन्यथा हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के बागियों ने वहां भाजपा का खेल बिगाड़ ही दिया है।

शैलेश तिवारी, सम्पादक

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