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जन समर्थन पाना है तो फिर से उतना ही सरल होना पड़ेगा कांग्रेस छत्रपों को

जन समर्थन पाना है तो फिर से उतना ही सरल होना पड़ेगा कांग्रेस छत्रपों को

जयंत शाह

केवल कांग्रेस पार्टी के ही नेता नहीं एक समय में भारत के सबसे लोकप्रिय नेता एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का प्रसंग इतिहास में उल्लेखित है एक कार्यक्रम में एक महिला ने उनका कॉलर पकड़ कर पूछा आजादी से हमें क्या मिला।
बगैर गुस्सा किए बहुत ही सहजता से पंडित नेहरू ने उस महिला को मुस्कुराते हुए जवाब दिया बस यही मिला आप अपने प्रधानमंत्री से कॉलर पकड़ कर बात कर सकते हैं।बाद के वर्षों में भी कांग्रेस पार्टी मैं राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री के रूप में और कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में तथा विभिन्न पदों पर आसीन जो भी लोकप्रिय नेता रहे। उनका व्यापक जनाधार रहा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी एवं पीवी नरसिम्हा राव एवं डॉ मनमोहन सिंह तक सभी बड़े नेताओं में एक समानता थी वह आम जनता से तथा कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं से बहुत ही सहजता से मिलते थे।एवं गौर से कार्यकर्ताओं की बात को ना केवल सुनते थे बल्कि किसी छोटे से कार्यकर्ता द्वारा दिया गया सुझाव यदि अच्छा लगता था उस पर यदि अमल में भी लाना है तो विचार करते थे।मैं स्वयं छात्र राजनीति में था उस समय का वाक्या मुझे याद है। 80 से 90 के दशक में मैं भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन का सीहोर जिला अध्यक्ष रहा इसी सिलसिले में कई बार रैलियों में दिल्ली जाने का मौका आया। एक रैली की घटना है दिल्ली स्थित मध्यप्रदेश भवन में प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पटेल के साथ हम सब कार्यकर्ता रुके हुए थे भोजन के समय हमारे लिए छोटी सी आयु में आश्चर्य की बात थी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में मोतीलाल वोरा स्वयं हम सभी कार्यकर्ताओं को भोजन परोस रहे थे।
एवं सभी कार्यकर्ताओं से बहुत ही सहजता से बतिया भी रहे थे। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की पदयात्रा में ना केवल कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं अपितु आम जनता से बहुत ही सरलत एवं विनम्रता से घुलने- मिलने का प्रयास कर रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे बच्चियों से लेकर बुजुर्ग व्यक्तियों का भी लाड प्यार उन्हें मिले ऐसे प्रयास कर रहे हैं। लेकिन विगत वर्षों में कांग्रेस पार्टी के नेताओं के अंदर कहीं ना कहीं उस आत्मीयता एवं सरलता की कमी दिखाई दे रही है।
एवं ग्लैमर पॉलिटिक्स का चलन बढ़ता ही जा रहा है।
आम नागरिक की तो छोड़ो यदि कांग्रेस के ही किसी वरिष्ठ या कनिष्ठ कार्यकर्ताओं को प्रदेशों में स्थापित कांग्रेस के छत्रपों से मिलना हो या अपनी बात कहनी हो तो पहले तो “सिक्योरिटी गार्ड “से ही जूझना पड़ता है।फिर नेता जी के खास लोगों” से मेल मुलाकात बढ़ाने के लिए उनके नखरो झेलना पड़ता है। तब जाकर हाथ में गुलदस्ता या ज्ञापन लेकर या पार्टी के प्रति सुझाव लेकर पहुंचे कार्यकर्ता पर यदि इन सब अवरोधों के बाद नेताजी की दृष्टि यदि पड़ जाए तो छोटा कार्यकर्ता अपने आपको धन्य समझता है।
आगामी वर्षों में पांच राज्यों में विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं ऐसी स्थिति में यदि विभिन्न प्रदेशों में स्थापित कांग्रेस के कथित छत्रपों की यही स्थिति रही तो आम जनता कैसे कांग्रेस से जुड़ पाएगी। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है वहां पर भी ऐसी स्थिति में सरकार के प्रत एंटी इनकंबेंसी “का लाभ कांग्रेस को कैसे मिल पाएगा यह विचारणीय प्रश्न है।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का मुकाबला है भारतीय जनता पार्टी से जिस पार्टी में छोटे कार्यकर्ता और मोर्चा संगठन के कार्यकर्ताओं को पार्टी की महत्वपूर्ण इकाई के रूप में ना केवल सैद्धांतिक रूप से बल्कि व्यवहारिक रूप से भी महत्व दिया जाता है।
यदि कांग्रेस पार्टी को फिर से जन समर्थन पाना है तो नेताओं को फिर उतनी ही सरलता सहजता वापस लाना होगी। तभी जाकर आगामी चुनाव में भी सफलता की उम्मीद की जा सकती है।
वरना अकेले राहुल गांधी की मेहनत का भी लाभ उठा पाना पार्टी के लिए मुश्किल है।

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